*नई दिल्ली/उत्तर प्रदेश*
देश में बीते कुछ वर्षों से ऐसे कई कानून लागू किए गए हैं जिन्हें मुस्लिम समुदाय के बीच संदेह की नज़र से देखा गया है — चाहे वो तीन तलाक कानून, एनआरसी और सीएए, या फिर कोई अन्य। अब सरकार द्वारा संसद में पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दे दिया है कि — क्या मुसलमानों को लगातार टारगेट किया जा रहा है?
ज़ैबुल अहमद खान का बयान:
उत्तर प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता ज़ैबुल अहमद खान ने कहा:
> “हर बार नया कानून आता है, और उसका असर सबसे पहले हमारे समाज पर पड़ता है। पहले तीन तलाक को लाए, फिर एनआरसी-सीएए से डर पैदा हुआ, मदरसों को बंद करने की बात हुई, और अब वक़्फ़ संपत्तियों पर नियम कड़े किए जा रहे हैं। क्या ये सब सिर्फ़ संयोग है?”
उन्होंने कहा कि संविधान सबको बराबरी का हक देता है, और मुसलमानों को अब ये अधिकार संविधान के दायरे में रहते हुए पूरी ताक़त से मांगना होगा।
> “हम कानून के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जब हर बार सिर्फ़ हमारे समुदाय को केंद्र में रखकर नियम बनाए जाएं — तो सवाल उठाना ज़रूरी हो जाता है।”
ज़ैबुल अहमद खान ने देशभर के मुस्लिम समाज से अपील की कि वह कानूनी, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखें।
> “हमारी आवाज़ सच्चाई और संविधान के साथ है — इसलिए हमें डरने की नहीं, संगठित होने की ज़रूरत है,” उन्होंने कहा।